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वेलफेयर फीस: अमेज़न, जोमाटो, उबर जैसी कंपनियों को चुकानी पड़ सकती है—आपकी जेब पर क्या होगा असर

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गिग वर्कर्स: फूडटेक और ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों ने देश में लाखों लोगों को डिलीवरी पार्टनर के रूप में रोजगार प्रदान किया है, जिन्हें गिग वर्कर्स (Gig Workers) कहा जाता है। स्विगी (Swiggy), जोमाटो (Zomato), अमेज़न (Amazon), फ्लिपकार्ट (Flipkart), उबर (Uber), ओला (Ola), और मीशो (Meesho) जैसी बड़ी कंपनियां बड़े पैमाने पर गिग वर्कर्स को रोजगार देने में शामिल हैं। अब इन कंपनियों से गिग वर्कर्स के नाम पर वेलफेयर फीस वसूलने की योजना बनाई जा रही है। यदि यह निर्णय लागू होता है, तो ये कंपनियां इस फीस का बोझ ग्राहकों पर डाल सकती हैं।

इन एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म पर 1 से 2 फीसदी लग सकती है फीस
यह प्रक्रिया कर्नाटक में चल रही है, जहां राज्य सरकार ने गिग वर्कर्स (सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर) बिल, 2024 का मसौदा तैयार किया है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि सरकार इस कानून के तहत इन एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म पर 1 से 2 फीसदी फीस लगाने की योजना बना रही है। अगले हफ्ते होने वाली समिति की बैठक के बाद इस बारे में आधिकारिक घोषणा की जा सकती है। फिलहाल, इस मुद्दे पर किसी भी कंपनी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस नियम के अंतर्गत वे सभी कंपनियां आएंगी जिनमें गिग वर्कर्स कार्यरत हैं।

गिग वर्कर्स को सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर फंड में योगदान देना होगा
ड्राफ्ट बिल के अनुसार, राज्य सरकार गिग वर्कर्स के लिए एक फंड स्थापित करेगी, जिसे कर्नाटक गिग वर्कर्स सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर फंड के नाम से जाना जाएगा। इस फंड के लिए सभी एग्रीगेटर कंपनियों से वेलफेयर फीस वसूल की जाएगी। ड्राफ्ट बिल में कहा गया है कि हर कंपनी को तिमाही के अंत में यह फीस सरकार को जमा करनी होगी।

विरोध में आए कई स्टार्टअप, बोले- आर्थिक बोझ बढ़ेगा
सूत्रों के अनुसार, इस बिल को लेकर कई स्टार्टअप और यूनिकॉर्न के एक समूह ने गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सरकार से कहा है कि ऐसा कानून प्रदेश में व्यापार करने में सहूलियत को प्रभावित करेगा। इससे स्टार्टअप इकोनॉमी पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा और आर्थिक बोझ बढ़ेगा। इस समूह ने सीआईआई (CII), नैसकॉम (Nasscom), और आईएएमएआई (IAMAI) के माध्यम से भी अपना विरोध सरकार के सामने प्रस्तुत किया है।

Source: Abp news

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