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चीन में सख्त सेंसरशिप का नया दौर:कोरोना का डेटा दबाने के बाद अब चीनी सरकार AI का मुंह बंद करने में जुटी

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चीन की कम्युनिस्ट सरकार सेंसरशिप का एक नया अभियान छेड़ चुकी है।

चीन हमेशा से ही सरकारी सीक्रेसी और दमन की नीतियों के लिए जाना जाता है, मगर अब उसका सेंसरशिप एक नए लेवल पर पहुंच चुका है।

कोविड के ओरिजिन की जांच से लेकर महामारी के दौरान बरती गई सख्ती की खबरों तक चीन की सेंसरशिप सब जानते हैं, लेकिन अब चीन की कम्युनिस्ट सरकार AI को भी सेंसर कर रही है।

पूरी दुनिया ChatGPT के जवाबों से हैरान है और बड़े कॉर्पोरेशन से लेकर कई सरकारें भी जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस शाहकार का इस्तेमाल करने की रणनीति बना रही हैं।

चीन में ChatGPT पर बैन है। वजह…सरकार को डर है कि ये चैटबॉट सवालों के ऐसे जवाब न दे दे जो उसकी नीतियों की बुराई करते हों।

हालांकि चीन में भी कई कंपनियां AI बेस्ड चैटबॉट्स और इसी तरह के दूसरे उत्पाद बनाने में जुटी हैं, लेकिन सरकार ने उन पर लगाम कसने के लिए भी ड्राफ्ट नियम जारी कर दिए हैं।

चीन के साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने इसी हफ्ते ये नियम जारी किए हैं। इनके मुताबिक हर जेनेरेटिव AI मॉडल के लिए कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों को मानना अनिवार्य होगा।

चीन में सेंसरशिप का इतिहास पुराना है, लेकिन AI पर सेंसरशिप को लेकर चीन की सरकार भी पसोपेश में है। चीन में AI का बाजार 2021 में 23 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का था। 2026 तक इसके 63 बिलियन डॉलर से ऊपर जाने की उम्मीद है।

ऐसे में सरकार की मुश्किल ये है कि AI को नियंत्रित करते हुए भी बाजार की बढ़त को न रोका जाए।

जानिए, आखिर क्यों चीन को AI के सेंसरशिप की जरूरत महसूस हो रही है? क्या वाकई में चीन की सरकार के लिए खतरा बन सकता है AI…

पहले समझिए, चीन और सेंसरशिप का नाता कितना पुराना है

चीन में 4 जून, 1989 की तारीख सर्च करना भी बैन…इसी दिन थ्यानमेन चौक नरसंहार हुआ था

चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन जितनी ही पुरानी सेंसरशिप पॉलिसी भी है। सत्ता में आने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए खुलकर हिंसा का इस्तेमाल किया और इन घटनाओं को लोगों तक न आने देने के लिए सेंसरशिप लागू की।

चीन में आज भी 4 जून, 1989 की तारीख सर्च करना बैन है। कोई भी व्यक्ति चीन में किसी भी इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर ये तारीख सर्च नहीं कर सकता है।

दरअसल, इसी तारीख को बीजिंग के थ्यानमेन चौक पर सरकार ने प्रदर्शन कर रहे छात्रों को रोकने के लिए टैंक भेज दिए थे। ये छात्र सरकारी आर्थिक नीतियों और सेंसरशिप का विरोध कर रहे थे।

उनकी मांगों में एक प्रमुख मांग अखबारों से सरकारी नियंत्रण हटाने की भी थी।

चीन के सरकारी आंकड़ों में ही इस नरसंहार में 300 लोगों की मौत हो गई थी। अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक मरने वालों की तादाद 2500 से ज्यादा थी।

इंटरनेट पर आने वाले हर शब्द की निगरानी करती है चीन की सरकार…एक गलती पर 3 साल तक की जेल

चीन में इंटरनेट को लेकर नियम खासे सख्त हैं। सरकार इंटरनेट की हर गतिविधि की निगरानी करती है।

सोशल मीडिया पोस्ट्स लेकर सर्च इंजन पर डाले जाने वाले की-वर्ड्स तक हर चीज की समीक्षा होती है। चीन में सरकार ने इस निगरानी के लिए दुनिया में सबसे बड़ा सिस्टम तैयार किया है, जहां लाखों कर्मचारी हर सेकेंड इसी काम में लगे होते हैं।

2013 में आए चीन के इंटरनेट कानून के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति की सोशल मीडिया पोस्ट या किसी भी ऑनलाइन गतिविधि को सरकार आपत्तिजनक माने तो 3 साल तक की जेल हो सकती है।

गलवान में मरने वाले चीनी सैनिकों पर सवाल उठाने वालों को 7 दिन की जेल

2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। चीन में इस घटना पर कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाए थे और मरने वाले सैनिकों की संख्या पर भी शक जताया था।

द न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक ऐसे पोस्ट्स की वजह से कम से कम 7 लोगों को चीनी अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया। उन्हें 7 से 15 दिन तक हिरासत में रखा गया और डराया-धमकाया गया।

2013 में शी जिनपिंग ने राष्ट्रपति बनने के बाद इंटरनेट के सख्त कानून लागू किए थे। 2015 में चीन की सरकार ने एक बयान जारी कर बताया कि सरकार ने ‘इंटरनेट सेफ्टी’ के उल्लंघन में 1500 लोगों को गिरफ्तार किया है।

कोरोना के ओरिजिन पर चीन ने छुपाया डेटा…वैज्ञानिकों ने गलती से जारी किया था, सरकार ने हटाया

कोरोना वायरस के ओरिजिन को लेकर जारी बहस से हम सभी वाकिफ हैं। अमेरिका की एक सीनेट कमेटी और दो एजेंसियों ने इस बात पर जोर दिया है कि ये वायरस चीन की एक लैब से लीक हुआ था।

हालांकि कुछ वैज्ञानिक ये मानते हैं कि ये वायरस वुहान के सी-फूड मार्केट में किसी बड़े जानवर के जरिये फैला था। इस थ्योरी से जुड़ा कुछ डेटा चीनी वैज्ञानिकों ने एक अंतरराष्ट्रीय रेपोजिटरी पर शेयर कर दिया था।

ये वो डेटा था जो इससे पहले तक चीन छुपाता रहा था। ये वुहान के उस मार्केट से जुड़ा डेटा था जो WHO की जांच टीम के आने से पहले ही पूरी तरह साफ कर दिया गया था। WHO की टीम को यहां से जेनेटिक सैंपल इकट्‌ठे करने का कभी मौका ही नहीं मिला था।

चीनी वैज्ञानिकों के शेयर किए गए इस डेटा पर शोध शुरू हुआ तो चीन की सरकार को इसका पता चला। इसके तुरंत बाद ही ये डेटा रिपॉजिटरी से हटा लिया गया।

डेटा पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों के सहयोग के अनुरोध पर भी चीन सरकार चुप्पी साधे बैठी है।

अभी तक आपने जाना कि चीन में सेंसरशिप का इतिहास क्या रहा है…

अब जानिए, इस सेंसरशिप का नया लेवल क्या है

चीन की सरकार का फरमान…AI को भी पार्टी की नीति माननी होगी

चीन के साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने इसी हफ्ते जेनेरेटिव AI मॉडल्स के लिए ड्राफ्ट रूल्स जारी किए हैं।

जेनरेटिव एआई मॉडल यानी वो तकनीक जिस पर ChatGPT जैसे चैटबॉट काम करते हैं। सरकार अब इन पर लगाम कसने की तैयारी में है।

दरअसल, ChatGPT पर चीन में बैन है मगर अलीबाबा, सेंसटाइम और बायडू जैसी कई चीनी कंपनियां अपने जेनेरेटिव एआई मॉडल्स पर काम कर रही हैं।

सरकार का कहना है कि इन कंपनियों को कोई भी नया प्रोडक्ट बनाने से पहले सरकार के इन नियमों का पालन सुनिश्चित करना होगा।

हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये ड्राफ्ट रूल्स हैं यानी इनमें बदलाव भी होंगे। इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स से बात करके सरकार इनमें बदलाव भी कर सकती है।

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नियम बनाने में चीन पश्चिमी देशों से भी तेज…नेशनल डेटा ब्यूरो भी बनाया

AI के रेगुलेशन्स को लेकर अभी तक अमेरिका और यूरोपीय देश भी पसोपेश में हैं। अमेरिका ने तो इन रेगुलेशन्स पर जनता की राय तक मांगी है।

मगर चीन जितनी जल्दी हो सके AI के जरिये होने वाले कामों को कंट्रोल करना चाहता है। मार्च, 2023 में ही चीन की सरकार ने नेशनल डेटा ब्यूरो बनाया है।

ये ब्यूरो डेटा की पहचान, उस पर इंडिविजुअल के अधिकार और उसके इस्तेमाल को रेगुलेट करने का काम करेगा। अभी तक भारत में भी डेटा प्रोटेक्शन को लेकर कानून नहीं बन पाया है।

कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के फेलो और चीनी AI के एक्सपर्ट मैट शीहान कहते हैं कि चीन की AI पॉलिसी सिर्फ नियंत्रण पर ही नहीं, डेटा प्रोटेक्शन पर भी बात करती है।

ये बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। AI के मॉडल्स जिस डेटा पर खुद को ट्रेन करते हैं वो किसका है और उसके इस्तेमाल की इजाजत किसे है ये तय करना बहुत जरूरी है।

हाल ही में फोटो एजेंसी गेटी इमेजेस ने एक AI स्टार्टअप स्टेबल डिफ्यूजन पर मुकदमा दायर किया है। उसका आरोप है कि AI के जरिये फोटोग्राफ्स बनाने वाले इस स्टार्टअप ने अपने AI मॉडल को गेटी इमेजेस की 20 लाख से ज्यादा फोटोग्राफ्स पर ट्रेन किया। इससे उसके फोटोग्राफ्स की वैल्यू कम हुई है।

पूर्व ब्रिटिश PM से लेकर पोप तक सब हो चुके हैं AI के शिकार

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर पोप फ्रांसिस की एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें वो एक फैशनेबल जैकेट में दिख रहे थे। ये तस्वीर एक AI प्लेटफॉर्म मिडजर्नी के जरिये बनाया गया था।

Source: Dainik Bhaskar

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