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मणिपुर आउट ऑफ कंट्रोल…, राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगा रही है केंद्र सरकार?

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विपक्ष हालात कंट्रोल नहीं कर पाने के लिए केंद्र को भी जिम्मेदार ठहरा रहा है. कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की है.

मणिपुर में मैतई-कुकी की हिंसक लड़ाई के बीच 2 महिलाओं के नग्न तस्वीर ने पूरे देश में भूचाल ला दिया है. वीडियो वायरल होने के बाद मणिपुर में तनाव का माहौल है. राज्य पुलिस आरोपियों पर कार्रवाई की बात कहकर इस मामले में मिट्टी डालने की कोशिशों में जुटी है. 

मणिपुर में 3 मई से जारी हिंसा में अब तक 120 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 50 हजार से ज्यादा लोग घायल हैं. हिंसा रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से अब तक कई प्रयास किए गए, लेकिन वहां के बिगड़े हालात ने सब पर पानी फेर दिया है. 

सेना की तैनाती और देखते ही गोली मारने के आदेश के बावजूद मणिपुर में हो रही हिंसा से शासन-प्रशासन पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है. आदिवासी संगठन टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्युत देव बर्मन का कहना है कि मणिपुर में पुलिस-प्रशासन पर से लोगों का भरोसा खत्म हो गया है. प्रशासन की शह पर ही सारे कुकृत्य हो रहे हैं. 

विपक्ष हालात कंट्रोल नहीं कर पाने के लिए केंद्र को भी जिम्मेदार ठहरा रहा है. कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की है. विपक्ष की मांग मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की भी है.

इधर, आदिवासी संगठनों ने कहना है कि गुरुवार को राजधानी इंफाल में प्रदर्शन कर महिलाओं और बच्चों पर हुए अत्याचार के कई और सबूत पेश किए जाएंगे. सबूत, कार्रवाई, हिंसा के बीच बड़ा सवाल है कि मणिपुर में स्थिति को केंद्र सरकार कंट्रोल क्यों नहीं कर पा रही है? 

मणिपुर हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार को दी हिदायत
मणिपुर हिंसा और उसके बाद सामने आए वीडियो पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह संवैधानिक अपमान है. अगर सरकार मणिपुर हिंसा के इस मामले में ठोस कार्रवाई करने से विफल रहती है, तो हम हस्तक्षेप करेंगे. 

चंद्रचूड़ ने कहा कि हिंसा के वक्त महिलाओं को साधन बनाना अस्वीकार्य है. हम केंद्र और राज्य को नोटिस जारी कर रहे हैं कि इस मामले में अपना जवाब दाखिल करे. 

मणिपुर वीडियो पर प्रधानमंत्री ने भी चुप्पी तोड़ी है. संसद के बाहर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह घटना देश को शर्मसार करने वाली है. 140 करोड़ लोगों का अपमान हुआ है जो भी मामले में दोषी होंगे, वो बख्शे नहीं जाएंगे. 

हालात पर काबू पाने के लिए अब तक क्या-क्या हुआ?

1. आर्मी के साथ-साथ सेंट्रल फोर्स की तैनाती- फ्रंटलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक हिंसा शुरू होने के बाद आर्मी और सेंट्रल फोर्स के 40 हजार जवानों को मणिपुर में तैनात किया है. इन जवानों की तैनाती हिंसाग्रस्त इलाकों में की गई है. 

हिंसा रोकने के लिए जगह-जगह पर चेक पोस्ट बनाए गए हैं. केंद्रीय बल के जवान पहाड़ी इलाकों में हेलीकॉप्टर से भी हवाई सर्वे कर रहे हैं. जवानों को शूट एंड साइट (देखते ही गोली मारने का आदेश) का भी ऑर्डर मिला हुआ है. 

2. गृह मंत्री अमित शाह कर चुके हैं 3 बैठकें-  मणिपुर हिंसा पर रोक लगाने के लिए गृह मंत्री अमित शाह भी 3 बैठकें कर चुके हैं. 29 मई को शाह ने पहली मीटिंग राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के साथ की थी. इस मीटिंग में हालात पर काबू पाने के लिए राज्य सरकार से सख्त कदम उठाने के लिए कहा गया था. 

शाह ने दूसरी मीटिंग 24 जून को की थी. इस मीटिंग में सभी दलों के नेताओं को बुलाया गया था और जरूरी कदम उठाए जाने का आश्वासन दिया गया था. शाह ने सर्वदलीय बैठक से पहले मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से पूरी स्थिति पर रिपोर्ट ली थी. 

तीसरी मीटिंग 26 जून को गृहमंत्री शाह ने प्रधानमंत्री के साथ की थी. इस मीटिंग में शाह ने प्रधानमंत्री को पूरी रिपोर्ट सौंपी थी. 

3. मुख्य सचिव और डीजीपी बदले गए- मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद सबसे पहले राज्य के डीजीपी पी डोंगेल को हटाया गया. राज्य सरकार ने त्रिपुरा काडर के आईपीएस अधिकारी राजीव सिंह को 1 जून 2021 को राज्य का डीजीपी बनाया. 

राज्य सरकार ने हिंसा के बाद मुख्य सचिव का भी तबादला कर दिया. 8 मई को राजेश कुमार की जगह आईएएस अधिकारी विनीत जोशी को मणिपुर का मुख्य सचिव बनाया गया. दोनों अधिकारियों की तैनाती में केंद्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके अलावा सरकार ने  40 IPS अधिकारियों को मणिपुर भेजा है.

हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रपति शासन विकल्प है?
विपक्ष हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर रहा है. विपक्ष का आरोप है कि राज्य सरकार हिंसा रोकने में पूरी तरह विफल हो गई है मणिपुर में बदतर हालात के लिए मुख्यमंत्री बीरेन सिंह जिम्मेदार हैं. हिंसा पर कैसे रोक लग सकती है?

इस पर इंफाल रिव्यू के एडिटर प्रदीप फनजोबम कहते हैं- राज्य सरकार हिंसा में अनभिज्ञ बन गई है, जबकि केंद्र के प्रतिबद्धताओं में कमी है. अगर यह सही हो जाए तो हिंसा आसानी से थम जाएगी. 

राज्यों में हालात सामान्य करने के लिए केंद्र को भी कई अधिकार मिले हैं. केंद्र की सिफारिश पर राष्ट्रपति राज्य में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट में वकील ध्रुव गुप्ता के मुताबिक अनुच्छेद 356 में साफ लिखा है कि संवैधानिक मशीनरी की विफलता के आधार पर भारत के राष्ट्रपति राज्य सरकार को भंग कर सकती है. हालांकि, राष्ट्रपति को पूरी तरह संतुष्ट होना पड़ता है कि राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है और संविधान के हिसाब से सरकार नहीं चलाई जा रही है

30 जून को मणिपुर में जारी हिंसा की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह इस्तीफा देने जा रहे थे, लेकिन सीएम आवास के बाहर उनके समर्थकों ने इस्तीफा फाड़ दिया. बीरेन सिंह ने भी इस पर चुप्पी साध ली.

एक्सपर्ट का कहना है कि मणिपुर में सरकार को भंग कर राष्ट्रपति शासन लागू करने में कई पेंच हैं. मसलन, केंद्र और राज्य दोनों जगह पर बीजेपी की ही सरकार है. 2022 के मणिपुर चुनाव में बीजेपी डबल इंजन का नारा दिया था. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से डबल इंजन की सरकार बनाने की अपील की थी. 

हिंसा के बाद से ही गृह मंत्रालय भी एक्टिव है और सेना को भी तैनात किया गया है. ऐसे में राज्य सरकार को हटा देने से हिंसा रुक जाए, यह कहा नहीं जा सकता है. 

मैतई और कुकी की लड़ाई में चुराचंदपुर, इम्फाल वेस्ट, इंफाल ईस्ट और विष्णुपुर सबसे अधिक हिंसा से प्रभावित है. इन इलाकों में मैतई समुदाय का काफी दबदबा है. 2022 के चुनाव में इन इलाकों से बीजेपी को 24 सीटें मिली थी. मणिपुर में सरकार बनाने के लिए कुल 31 सीटों की जरूरत होती है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर में मैतई प्रभावित सीटों की संख्या करीब 40 है. 

मैतई और कुकी में किस बात को लेकर हो रही है लड़ाई
27 मार्च को मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन की बेंच ने एक फैसला सुनाया. इसमें कहा गया कि मैतई समुदाय को भी एसटी की श्रेणी में राज्य सरकार शामिल करें. हाईकोर्ट के इस आदेश को कुकी समुदाय ने गैर-कानूनी बताया.

मणिपुर में मुख्य रूप से मैतई, कुकी और नागा जाति रहते हैं. नागा और कुकी को पहले से ही आदिवासी का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन 1949 में मैतई से यह दर्जा छीन लिया गया था. इसके बाद से ही मैतई समुदाय के लोग इसकी मांग कर रहे थे. वर्तमान में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है.

कुकी जनजातियों का कहना है कि अगर मैतई को आदिवासी वाला आरक्षण मिला तो हमारा घर-परिवार लूट लिया जाएगा. मौजूदा कानून के अनुसार मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है. जानकारों का कहना है कि यही विरोध की मुख्य वजह है. कुकी समुदाय के लोगों को लगता है कि पहले से ही मजबूत मैतेई समुदाय के लोग उनकी पहाड़ों पर भी कब्जा कर लेंगे.

source by : ABP News

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