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बारिश, बर्फबारी और माइनस तापमान…इन चुनौतियों को पार कर तैयार हुआ ‘सेला टनल’, जानिए क्यों खास है ये सुरंग

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सेला सुरंग भारत की सबसे ऊंची पहाड़ी सुरंग सड़क है जो भारतीय सेना को अरुणाचल प्रदेश में दोनों देशों के बीच विवादित सीमा तक हर मौसम में संपर्क बनाए रखने में मदद करेगी.

9 मार्च 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में ‘सेला टनल’ का उद्घाटन किया. ये टनल न सिर्फ दुनिया की सबसे लंबी डबल-लेन टनल है बल्कि रणनीतिक लिहाज से भी इसको काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.  

सेला टनल 13,700 फीट की ऊंचाई पर बनी है और ये तेजपुर से अरुणाचल प्रदेश के तवांग को जोड़ती है. तवांग वही इलाका है जहां साल 2022 के दिसंबर महीने में भारतीय जवानों की चीनी सैनिकों से भिड़ंत हुई थी. 

इस टनल के पहले तक तवांग जाने का एक ही रास्ता था जो पहाड़ों से होकर गुजरता है, उस रास्ते की ऊंचाई लगभग 14 हजार फीट है और इस रास्ते पर बर्फ और ठंड इतनी ज्यादा पड़ती है कि यहां का तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है.

इतना ही ज्यादा बर्फबारी के कारण इस रास्ते को कई महीनों तक बंद रखा जाता था. लेकिन सेला टनल के उद्घाटन के बाद अब तवांग जाने का रास्ता 12 महीने के लिए खुल जाएगा और इस दूरी को 8 घंटे में तय किया जा सकेगा.  

5 प्वाइंट में समझिए सेला टनल क्यों इतना खास है? 

1. क्यों बनाया गया सेला टनल 

अरुणाचल प्रदेश की 1,080 किमी लंबी सीमा चीन से लगी है. इसके अलावा 520 किमी लंबी सीमा म्यांमार और 217 किमी लंबी सीमा भूटान से भी लगी हुई है. चीन भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों को शुरू से ही दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना दावा करता रहा है. इसमें तवांग शामिल है. पिछले कुछ सालों में चीन ने सीमावर्ती इलाको में अपनी गतिविधियों भी काफी बढ़ा दी है. 

चीन की इन हरकतों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने भी बड़े पैमाने पर सीमावर्ती इलाकों में विकास की कवायद शुरू कर दी है. इन्हीं परियोजनाओं में सीमावर्ती इलाकों में बसे दुर्गम गांवों तक सड़कों का जाल बिछाना और सेला टनल का निर्माण करना शामिल है. 

इसे आसान भाषा में समझें तो भारत को आजाद हुए  75 साल से भी ज्यादा को समय हो गया है लेकिन इतने सालों बाद भी बर्फबारी के कारण ईटानगर से तवांग जाने का रास्ता साल में महीनों महीनों तक बंद रहता था. साल 1962 में हुए युद्ध के दौरान भी चीनी सेना इसी इलाके से भारत में घुस कर असम के तेजपुर शहर के करीब पहुंच गई थी. 

इस इलाके तक पहुंचने के लिए 448 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है कि और उसके लिए 12 घंटे से ज्यादा समय लगता था. लेकिन सेला टनल बनने के बाद अब ये रास्ते 12 महीनों के लिए खुल जाएंगे. 

2. तवांग इलाका क्यों है भारत के लिए खास?

साल 2022 के दिसंबर महीने में भारतीय जवानों की चीनी सैनिकों से इसी इलाके में भिड़ंत हुई थी. अरुणाचल प्रदेश का तवांग चीन की सीमा से केवल 35 किलोमीटर ही दूर है. तवांग पर चीन की बुरी नजर का एक कारण ये भी है कि तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है और इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ वाली जगह भी कहा जाता है. 

साल 1914 में एक समझौता हुआ था जिसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था, लेकिन भारत का पड़ोसी देश चीन आज भी इसे तिब्बत का हिस्सा बताता है. 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान भी चीन ने एक महीने तक इस क्षेत्र पर कब्जा तक रखा था. हालांकि युद्धविराम के तहत उसे अपना अवैध कब्जा हटाना पड़ा.

3. कब हुई थी इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 

इस टनल की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2019 के फरवरी महीने में रखी थी. इसका पूरा डिजाइन और इन्फ्रास्ट्रक्चर भारतीय सेना की स्पेशल विंग बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) ने तैयार किया है. अब तक इस सुरंग को लेकर जितनी जानकारी सामने आई है उसके हिसाब से इस टनल के निर्माण में 825 करोड़ रुपये का खर्च आया है. 

इस पूरे परियोजना के तहत दो अलग अलग सुरंगें बनाई गईं हैं और इन्हें आपस में जोड़ने के लिए सड़क का निर्माण किया गया है. कुल मिलाकर सुरंग और सड़कों को मिलाकर ये 12 किलोमीटर लंबी है.

इस टनल को डबल-ट्यूब टनल कहा जाता है क्योंकि इसमें ट्रैफिक जैसी दिक्कतों से बचने के लिए दो लेन बनाई गई हैं. एक लेन को सामान्य ट्रैफिक के खोला जाएगा. जबकि, दूसरी लेन से इमरजेंसी में बाहर निकलने की सुविधा दी जाएगी. 

इंडियन एक्प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पहली सुरंग तक पहुंचने के लिए सात किलोमीटर लंबी सड़क बनाई गई है. वहीं दूसरी सुरंग के लिए 1.2 किलोमीटर सड़क को लिंक रोड के रूप में तैयार किया गया है. इसी रिपोर्ट के अनुसार जो दो सुरंग बनाई गई है, उसमें पहली सुरंग सिंगल-ट्यूब टनल है, जिसकी लंबाई 980 मीटर है और दूसरी डबल-ट्यूब टनल है, जिसकी लंबाई 1.5 किलोमीटर है. 

4. टनल से गुजरने वाले यात्रियों की सेफ्टी का भी रखा गया है ख्याल 

सेला टनल के बनने के बाद अब लोगों को आवाजही करने में आसानी तो होगी ही साथ ही पहले की तुलना में काफी समय की भी बचत होगी. ये टनल अरुणाचल के पश्चिम कामिंग जिले में तवांग और देरांग के बीच की दूरी को 12 किलोमीटर तक कम कर देगी. जिसका मतलब है कि पहले की तुलना में अब यात्रियों का लगभग 90 मिनट बच जाएगा. 

इस टनल को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यात्रियों को सफर के दौरान किसी तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े. टनल में वेंटिलेशन सिस्टम, लाइट सिस्टम और फायर ब्रिगेड सिस्टम भी है. इस सुरंग से रोजाना 80 किमी प्रति घंटे की स्पीड 3,000 कारों और 2,000 ट्रकों को ले जाया जा सकेगा. 

5. टनल से भारतीय सेना को कैसे पहुंचेगा फायदा 

13 हजार फुट की ऊंचाई होने के कारण अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों का तापमान काफी कम हो जाता है. सर्दियों में ये तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिरना बहुत ही आम है, ऐसे में सड़क तो जम ही जाती है, इस इलाके से जाने वाली गाड़ियों के पेट्रोल-डीजल भी जमने लगता है. ऐसे में सेना के सामानों को बॉर्डर तक पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. लेकिन इस टनल के बन जाने के बाद सेना के फोर-कोर (गजराज कोर) हेडक्वार्टर तेजपुर, असम से तवांग सेक्टर तक सैनिकों और आर्टिलरीज की पहुंच भी काफी आसान हो जाएगी.

650 मजदूरों ने पूरे 90 लाख घंटे किया काम 

द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में बीआरओ हेड ने कहा कि सेला सुरंग का निर्माण न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (NATM) का इस्तेमाल करते हुए किया गया है और इस प्रोजेक्ट पर पिछले पांच सालों से हर दिन औसतन लगभग 650 मजदूरों ने पूरे 90 लाख घंटे काम किया है. 

उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट के निर्माण में कुल मिलाकर 71,000 मीट्रिक टन सीमेंट, 5,000 मीट्रिक टन स्टील का उपयोग किया गया है. इतना ही नहीं इसे पूरा करने में लगे पांच सालों में से लगभग 762 दिनों में भारी बर्फबारी या बारिश हुई और 832 दिनों में तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहा. जिससे काम को अंजाम देने वाले कर्मियों के लिए भारी चुनौतियां पैदा हुईं. 

पहले ही बन जाती टनल, बादल फटने के कारण हुई देरी 

सीमा सड़क संगठन के अनुसार सेला सुरंग भारत में शुरू की गई सबसे चुनौतीपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक है. इस पर 50 से ज्यादा इंजीनियरों और 800 से ज्यादा क्रू मेंबर्स ने काम किया था. 

इस प्रोजेक्ट को पहले ही पूरा किया जा सकता था लेकिन साल 2023 के जुलाई में बादल फटने के कारण आने-जाने वाली सड़कें दुर्गम हो जाने का असर इस टनल के निर्माण कार्य पर भी पड़ा.  

source by : ABP News

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